Wednesday, December 9, 2009

तब मुझको एहसास हुआ है!!

जब कमरे से कॉलेज तक मैं पढने जाया करता हूँ !
जब आस-पास की भीड़  में अक्सर, खुद हीं खो जाया करता हूँ !
जब होंठो पर एक हँसी समेटे, खुद हीं से भागा करता हूँ !
जब चुपके से कमरे के अन्दर, हौले से रो लेता हूँ !
तब मुझको एहसास हुआ है, कोई दिल के बहुत हीं पास हुआ है !

जब आँचल उसका उड़-उड़ कर, मेरे हाथों में आ जाता था !
जब उसकी घनी उलझी लटों को, मैं उँगलियों से सुलझाता था !
अब जब उसकी यादें मुझको, उन पलों में ले जाती हैं !
तब मुझको एहसास हुआ है, कोई दिल के बहुत हीं पास हुआ है !



जब बसंत के मौसम में उसका, दुपट्टा ढलक सा जाता था !
जब पतझड़ का मौसम राहों में, पत्तों की सेज बिछाता था !
जब बारिश की पहली फुहार में, मैं उस से मिलने जाता था !
जब ठंढ के मौसम में अक्सर, उसे बाँहों में भर लेता था !
अब जब बीतता हर-एक मौसम, मुझे उसकी याद दिलाता है !
तब मुझको एहसास हुआ है,कोई दिल के बहुत हीं पास हुआ है !


जब नदी किनारे बैठे-बैठे , मैं प्रेम के गीत सुनाता था !
जब नदी पार से उसकी खातिर, फूल चुन कर लाता था !
जब हाथ पकड़ कर घंटों उसका, लहरों पर दौड़ लगाता था !
जब साथ मेरे वो होती थी, दुनिया को जन्नत बतलाता था !
अब जब वहीँ नदी का वहीँ किनारा , मुझसे मेरा हीं किस्सा दुहराता है !
तब मुझको एहसास हुआ है, कोई दिल के बहुत हीं पास हुआ है !

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